Tuesday, October 15, 2013

जलना काम है शमा का हर रात जलती है

जलना काम है शमा का हर रात जलती है
ख्वाहिशों कि शाम वैसे हि हर दिन ढलती है ।

चाँद को छुने की हिमाकत न पाल ए दिन
उसकी चाह मे सितारें भी हाथ मलती है ।

अभि तो जिन्दा हु कैसे भुलु चाहतको अपनी
यहाँ  तो मुर्दे के दिल मे भी हसरते पलती  है ।

हमे नही कोइ शिकायत दिल के खलिस से
ये वो तपिस है जिससे पत्थर भी पिघलती है ।

ये केसी उमस फैली है जिन्दगी कि राहों मे
हवाओं मे कमि रहती है जो हमेसा खलती है ।

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